1934 के दौरान, युकावा अक्सर रातों में जागते हुए नाभिकीय बलों के बारे में कल्पना करते रहते थे और जब भी उन्हें कोई विचार आता वह उनके बिस्तर के पास रखी हुई एक नोटबुक पर लिख लेते थे , ताकि वह विचार उनसे भूल न जाए । कभी-कभी उन्हें लगता था कि वे समाधान के करीब पहुँच गए हैं, लेकिन जब वे सुबह उठकर उन कल्पनाओं के बारे में सोचते तो, वे निरर्थक प्रतीत होती थीं। लेकिन एक रात उन्हें एक अंदर से एक विचार आया कि— बल की तीव्रता और बंधे हुए कण के द्रव्यमान के बीच संबंध होना चाहिए।
संक्षिप्त वर्णन
इसके आधार पर युकावा ने निम्नलिखित प्रस्ताव दिए:
- नाभिकीय बंधन बल भारी आवेशित कणों (भारी क्वांटा) के परस्पर आदान-प्रदान द्वारा संचारित होता है।
- इस बल की प्रभावी सीमा उस क्वांटा के द्रव्यमान के व्युत्क्रमानुपाती होती है।
- ये भारी क्वांटा अस्थिर होते हैं और कमजोर अभिक्रिया (weak interaction) के माध्यम से क्षय (decay) हो जाते हैं।
इस विचार के आधार पर, युकावा ने गणना की कि इस बंधे हुए कण का द्रव्यमान इलेक्ट्रॉन के द्रव्यमान का लगभग 200 गुना होगा। युकावा की भविष्यवाणी के थोड़े समय बाद ही ब्रह्मांडीय किरणों (cosmic rays) में लगभग इतने ही द्रव्यमान वाला एक कण खोजा गया। शुरू में ऐसा लगा कि युकावा की भविष्यवाणी अत्यंत सटीक थी, लेकिन उस कण को लेकर समस्याएं थीं। हालांकि उसका द्रव्यमान इलेक्ट्रॉन का 207 गुना था, लेकिन वह एक फर्मियॉन था जिसका स्पिन आधा-पूर्णांक (half-integral) था, जबकि युकावा ने बल ले जाने वाले कण के लिए पूर्णांक स्पिन (integral spin) वाले बोसोन की भविष्यवाणी की थी। बाद में यह पाया गया कि यह ब्रह्मांडीय किरणों में पाया गया कण वह नहीं था जिसकी युकावा ने कल्पना की थी। इसके बाद लगभग इलेक्ट्रॉन के 270 गुना द्रव्यमान वाले तीन कण पाए गए। इनमें वे सभी गुण थे जिनकी युकावा ने भविष्यवाणी की थी। एक कण में धनात्मक आवेश था, एक में ऋणात्मक और एक था निष्प्रभावी (न्यूट्रल)। युकावा ने इस कण को "मेसॉन"नाम दिया।
वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने यह सिद्धांत दिया कि प्रोटॉन और न्यूट्रॉन के बीच मजबूत नाभिकीय बल (strong nuclear force) मेसॉनों, विशेष रूप से पायन (pion)(π+, π–, π⁰) के माध्यम से संचारित होता है। 1947 में पायन की खोज के बाद, युकावा को 1949 में नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ।
युकावा के सिद्धांत के अनुसार, प्रत्येक न्यूक्लिऑन (प्रोटॉन एवं न्यूट्रॉन) लगातार पायन का उत्सर्जन और पुनः अवशोषण करता रहता है। पायन तीन प्रकार के होते हैं:
- आवेशित पायन: π⁺, π⁻
- आवेशरहित पायन: π⁰
चूंकि ये भारी क्वांटा होते हैं अतः वे अपने साथ संवेग (momentum) ले जाते हैं। यह संवेग का स्थानांतरण एक बल के रूप में कार्य करता है।
- चित्र 1: एक प्रोटॉन एक π⁰ दूसरे प्रोटॉन को भेजता है — यह प्रतिकर्षण (repulsion) दर्शाता है।
- चित्र 2: एक न्यूट्रॉन एक π⁰ दूसरे न्यूट्रॉन को भेजता है — यह आकर्षण (attraction) को दर्शाता है।
- चित्र 3: एक प्रोटॉन एक +ve पायन (π⁺) उत्सर्जित करता है और स्वयं न्यूट्रॉन बन जाता है। यदि समीप स्थित न्यूट्रॉन उस पायन (π+) को अवशोषित करता है तो वह न्यूट्रॉन, प्रोटॉन में परिवर्तित हो जाता है। प्रोटॉन एवं न्यूट्रॉन कि यह प्रक्रिया सतत रूप से जारी रहती है।
-ve पायन (π⁻) का आदान-प्रदान संभव नहीं होता। इस आदान-प्रदान को दो लोगों के बीच टेनिस बॉल को लगातार एक दूसरे कि तरफ फेंकने के समान माना जा सकता है। जब तक यह मेसॉन आदान-प्रदान चलता रहता है, तब तक मजबूत बल (strong force) न्यूक्लिओनों को बांधे रखता है। लेकिन इसके लिए आवश्यक है कि न्यूक्लिऑन बहुत पास-पास हों।
विस्तृत वर्णन
- `h = h क्रास
- Mπ = M पाई
- π⁰ = न्यूट्रल मेसॉन
- π+ = पॉजिटिव मेसॉन
- π- = नेगेटिव मेसॉन
- φ = साई
- ∆ / δ= डेल्टा
- ∇ = डेल
विनिमय बल: नाभिकीय बल का मेसॉन सिद्धांत –
🕸️ मेसॉन सिद्धांत
1935 में जापानी भौतिकविद हिदेकी युकावा ने यह विचार प्रस्तुत किया कि नाभिकीय बल एक ऐसे कण के विनिमय से उत्पन्न होता है, जिसका विराम द्रव्यमान (rest mass) शून्य नहीं है। युकावा ने परिकल्पना की कि प्रत्येक न्यूक्लिऑन (प्रोटॉन एवं न्यूट्रॉन) के चारों ओर एक मेसॉन क्षेत्र होता है, जिससे वह निरंतर मेसॉनों को उत्सर्जित और अवशोषित करता है। इससे एक बल उत्पन्न होता है।
इसे यांत्रिक उदाहरण से समझा जा सकता है – जैसे दो व्यक्ति दो अलग अलग ठेलों पर खड़े होकर एक-दूसरे पर कोई वस्तु फेंकते हैं। जब एक व्यक्ति वस्तु फेंकता है, तो उसे पीछे की दिशा में संवेग प्राप्त होता है। जब दूसरा व्यक्ति उसे पकड़ता है, तो उसे भी पीछे की दिशा में संवेग प्राप्त होता है। यह विनिमय एक प्रतिकर्षण बल उत्पन्न करता है। इसके विपरीत, यदि वे एक-दूसरे से वस्तु खींचते हैं, तो वह एक दूसरे कि ओर पास आने लगते है और आकर्षण बल उत्पन्न होता है। इसी प्रकार, न्यूक्लिऑनों के बीच मेसॉनों के विनिमय से एक आकर्षण बल उत्पन्न हो जाता है।
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जब किसी वस्तु को दूसरे व्यक्ति की ओर फेंका जाता है तो प्रतिकर्षण बल और खींचने पर आकर्षण बल उत्पन्न होते हैं। |
मेसॉन के उत्सर्जन से न्यूक्लिऑन (प्रोटॉन एवं न्यूट्रॉन) का द्रव्यमान घट जाना चाहिए, लेकिन ऐसा प्रयोगों में नहीं पाया गया। इसका अर्थ है कि मेसॉन का उत्सर्जन और अवशोषण बहुत ही कम समय में होता है जिससे ऊर्जा में अनिश्चितता हाइजेनबर्ग की अनिश्चितता सिद्धांत के अनुरूप हो:
∆E.∆t≈`h .....(1)
यह मेसॉन विनिमय का प्रत्यक्ष अवलोकन असंभव बना देता है, अतः इस विनिमय प्रक्रिया में सम्मिलित मेसॉनों को आभासी मेसॉन (Virtual Meson) कहा जाता है। यह विधि क्वांटम विद्युतचुंबकीय क्षेत्र सिद्धांत में कूलॉम्ब बल उत्पन्न करने वाले आभासी फोटॉनों के विनिमय के समान है। वहाँ भी अनिश्चितता सिद्धांत के कारण आभासी फोटॉन का प्रत्यक्ष अवलोकन संभव नहीं होता। यद्यपि, कूलॉम्ब बल की परास या सीमा (range) अनंत होती है क्योंकि फोटॉन का विश्राम द्रव्यमान (rest mass) शून्य होता है।
ड्यूट्रान समस्या के अध्ययन से यह ज्ञात हुआ कि नाभिकीय बल की परास या सीमा अत्यंत छोटी होती है, जो नाभिकीय आयामों के स्तर पर होती है। यदि मेसॉन का विश्राम द्रव्यमान सीमित है, तो इससे नाभिकीय बल के लिए एक निश्चित, सीमित परास या सीमा प्राप्त होती है।
चूंकि नाभिकीय बल की सीमा बहुत छोटी होती है, इसलिए इसका कारण किसी भारी (rest mass non-zero) कण का विनिमय होना चाहिए। यदि हम मान लें कि यह कण प्रकाश की गति के आधे वेग से चलता है, तो वह एक छोटे समय में केवल कुछ फर्मी की दूरी तय कर सकता है – यही नाभिकीय बल की सीमा है।
सिद्धांत के अनुसार, प्रत्येक न्यूक्लिऑन (प्रोटॉन एवं न्यूट्रॉन) लगातार पायन का उत्सर्जन और पुनः अवशोषण करता रहता है। पायन तीन प्रकार के होते हैं:
- आवेशित पायन: π⁺, π⁻
- आवेशरहित पायन: π⁰
चूंकि ये भारी क्वांटा होते हैं अतः वे अपने साथ संवेग (momentum) ले जाते हैं। यह संवेग का स्थानांतरण एक बल के रूप में कार्य करता है।
- एक प्रोटॉन एक π⁰ दूसरे प्रोटॉन को भेजता है — यह प्रतिकर्षण (repulsion) दर्शाता है।
- एक न्यूट्रॉन एक π⁰ दूसरे न्यूट्रॉन को भेजता है — यह आकर्षण (attraction) को दर्शाता है।
- एक प्रोटॉन एक +ve पायन (π⁺) उत्सर्जित करता है और स्वयं न्यूट्रॉन बन जाता है। यदि समीप स्थित न्यूट्रॉन उस पायन (π+) को अवशोषित करता है तो वह न्यूट्रॉन, प्रोटॉन में परिवर्तित हो जाता है। प्रोटॉन एवं न्यूट्रॉन कि यह प्रक्रिया सतत रूप से जारी रहती है।
🕸️ हाइजेनबर्ग के अनिश्चितता सिद्धांत द्वारा मेसॉन के द्रव्यमान का आकलन
ΔE = Mπc² .....(2)
उदाहरण के लिए, यदि एक प्रोटॉन किसी मेसॉन (जिसे विद्युत रूप से उदासीन प्रकृति दर्शाने के लिए π⁰ द्वारा निरूपित किया गया है) का उत्सर्जन करता है, जिसका विराम द्रव्यमान Mπ है, तब
यह स्पष्ट है कि प्रोटॉन का द्रव्यमान घटना चाहिए, किंतु अत्यंत सूक्ष्म प्रयोगों में ऐसा नहीं देखा गया है; प्रोटॉन का विराम द्रव्यमान सदैव नियत पाया जाता है, जो इलेक्ट्रॉन के विराम द्रव्यमान का लगभग 1836 गुना होता है। यह ऊर्जा संरक्षण के सिद्धांत का स्पष्ट उल्लंघन प्रतीत होता है। किंतु इस स्थिति को समझा जा सकता है यदि मेसॉन का उत्सर्जन अल्पकालिक हो तथा वह पुनः शीघ्र ही अवशोषित हो जाए, ऐसे समयांतराल में कि:
पूरी प्रक्रिया को निम्न प्रकार से निरूपित किया जा सकता है:
इस प्रकार, किसी कण का उत्सर्जन एवं पुनः अवशोषण, जिसकी विश्राम ऊर्जा Mπc² है, हाइजेनबर्ग के अनिश्चितता सिद्धांत के अनुरूप (एवं इस प्रकार ऊर्जा संरक्षण के अनुकूल) है यदि यह कण उसी या किसी अन्य न्यूक्लिऑन के साथ समय के भीतर क्रिया कर ले, जहाँ:
परंतु इस समयांतराल में मेसॉन किस वेग से यात्रा करता है? स्पष्ट है कि वह प्रकाश के वेग से यात्रा नहीं कर सकता क्योंकि तब विशेष सापेक्षता सिद्धांत के अनुसार उसका विश्राम द्रव्यमान शून्य होना चाहिए, जो अनंत परास वाले नाभिकीय बल का संकेत देगा, जबकि प्रयोगात्मक तथ्यों के अनुसार ऐसा नहीं है। दूसरी ओर, यदि मेसॉन बहुत धीमे गति से चलता है तो नाभिकीय बल की परास प्रयोगात्मक रूप से प्रेक्षित परास से भी कहीं कम हो जाएगी।
यदि हम मान लें कि मेसॉन लगभग प्रकाश के वेग के आधे वेग से यात्रा करता है, तो समय में वह जो दूरी तय करेगा वह होगी:
यह दूरी , स्पष्टतः नाभिकीय आयामों के स्तर की होनी चाहिए अर्थात् यह नाभिकीय बल की प्रेक्षित परास के अनुरूप होनी चाहिए।
मेसॉन के द्रव्यमान का अनुमान लगाना
समीकरण (3) तथा (4) से हमें प्राप्त होता है:
इस समीकरण से हम मेसॉन के विश्राम द्रव्यमान Mπ का अनुमान लगा सकते हैं, यदि हम नाभिकीय बल की प्रायोगिक रूप से मापी गई परास का मान इसमें रखें। यदि हम Mπ (जहाँ इलेक्ट्रॉन का विश्राम द्रव्यमान है) रखें, तब:
इस प्रकार, यदि नाभिकीय बल मेसॉन विनिमय की प्रक्रिया के कारण उत्पन्न होता है, तो उसकी परास कुछ फर्मी के परिमाण की होगी, जो प्रायोगिक रूप से प्राप्त मानों के साथ मेल खाती है। इस प्रकार समीकरण (5) में Mπ रखने से नाभिकीय आयाम के परिमाण की सीमित परास प्राप्त होती है।
यदि यही गणना विद्युत्चुंबकीय क्षेत्र (या गुरुत्वीय क्षेत्र) के लिए की जाए तो परास अनंत होगी क्योंकि इस क्षेत्र के कण (फोटॉन) का द्रव्यमान शून्य होता है। समीकरण (5) में यदि Mπ रखा जाए तो परास अनंत हो जाएगी। यहाँ Mπ पाया जाता है।
µ मेसॉन की खोज एवं Yukawa मेसॉन
युकावा के सिद्धांत के एक वर्ष बाद, कॉस्मिक किरणों में लगभग द्रव्यमान वाले एक कण की खोज हुई, जिसे µ मेसॉन (म्यु मेसॉन) कहा गया। प्रारंभ में यह समझा गया कि यही युकावा द्वारा भविष्यवाणी किया गया मेसॉन है। किंतु बाद में यह पाया गया कि µ मेसॉन बहुत अधिक पदार्थ में बिना नाभिक से क्रिया किए गुजर सकता है, जबकि युकावा मेसॉन से नाभिकीय क्रिया अपेक्षित थी।
लगभग 12 वर्षों बाद उच्च ऊर्जा त्वरकों के माध्यम से कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय के बर्कले प्रयोगशाला में वे मेसॉन खोजे गए जो वास्तव में प्रबल नाभिकीय बल के लिए उत्तरदायी हैं। ये π मेसॉन (पाई मेसॉन) कहलाते हैं। वास्तव में π मेसॉन के तीन प्रकार खोजे गए हैं। प्रत्येक न्यूक्लिऑन लगातार पाई मेसॉन का उत्सर्जन एवं अवशोषण करता रहता है, या तो समीकरण {2(A)} के अनुसार अथवा निम्नलिखित प्रक्रियाओं द्वारा:
n — p + π-
p — n + π+
p — p + π⁰
.....(7)
युकावा द्वारा भविष्यवाणी किए गए मेसॉन (π मेसॉन या पायन) बाद में उच्च ऊर्जा त्वरकों द्वारा खोजे गए।
तीन प्रकार के पायन मिले: π⁺, π⁰ और π⁻।
इनकी विशेषताएँ निम्न हैं:
π-मेसॉन का शून्य स्पिन उन्हें न्यूक्लिऑनों द्वारा उत्सर्जित और अवशोषित किए जाने के लिए उपयुक्त बनाता है। दूसरी ओर, μ-मेसॉन का स्पिन 1/2 है, जो न्यूक्लिऑनों (स्पिन 1/2) के साथ विनिमय प्रक्रिया में बाधा डालता है।
कॉस्मिक किरणों में पाई मेसॉन का अवलोकन
पाई मेसॉन (π मेसॉन) की उपस्थिति भी कॉस्मिक किरणों में किया गया। वायुमंडल के उच्च स्तर पर कॉस्मिक किरणों में प्रायः उच्च ऊर्जा के प्रोटॉन होते हैं। जब ये प्रोटॉन वायुमंडलीय गैसों के परमाणुओं के नाभिकों से टकराते हैं, तब मेसॉन उत्पन्न होते हैं। शून्य स्पिन के कारण π मेसॉन का उत्सर्जन तथा अवशोषण न्यूक्लिऑन द्वारा सरलता से किया जाता है। समीकरण (7) में कोणीय संवेग संरक्षण का नियम संतुष्ट होता है।
दूसरी ओर, µ मेसॉन का स्पिन 1/2 होता है, अतः वह समीकरण (7) में सम्मिलित नहीं किया जा सकता क्योंकि न्यूक्लिऑन का भी स्पिन 1/2 होता है। π मेसॉन अत्यंत शीघ्रता से क्षय (decay) हो जाते हैं, इसलिए समुद्र तल पर µ मेसॉन की अपेक्षा उनका पहले पता नहीं लगाया जा सका।
π मेसॉन का औसत जीवनकाल लगभग सेकंड होता है,
जबकि µ मेसॉन (या म्यूऑन) का जीवनकाल लगभग सेकंड होता है।
π मेसॉन का नाभिक से अंतःक्रिया
π⁻ मेसॉन अपने आवेश के कारण नाभिक द्वारा आकर्षित होता है और उसमें अवशोषित हो जाता है। इस प्रक्रिया में वह अपनी सारी विश्राम ऊर्जा नाभिक को दे देता है और नाभिक का विघटन कर देता है। ऐसी प्रेरित नाभिकीय विघटन क्रियाओं का प्रयोगशाला में बड़े पैमाने पर अवलोकन एवं अध्ययन किया गया है। दूसरी ओर, π⁺ मेसॉन अपने धनात्मक आवेश के कारण नाभिक द्वारा प्रतिकर्षित होता है। π⁰ मेसॉन सामान्यतः दो गामा किरणों में क्षय हो जाता है।
युकावा द्वारा भविष्यवाणी का पुष्टि होना
युकावा द्वारा भविष्यवाणी किए गए π मेसॉन की खोज इस सिद्धांत की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी और नाभिकीय बल को समझने के हमारे प्रयास में एक मील का पत्थर सिद्ध हुई। युकावा ने दो न्यूक्लिऑनों के बीच अंतःक्रिया की स्थितिज ऊर्जा के लिए एक सन्निकट समीकरण भी प्रस्तुत किया:
...(8)
जहाँ एक नियतांक है, न्यूक्लिऑनों के बीच की दूरी है तथा बल की परास है, जिसका मान समीकरण (5) से लिया जा सकता है। यह समीकरण "युकावा पोटेंशियल" के नाम से जाना जाता है। चित्र में इस पोटेंशियल को दर्शाया गया है।
युकावा पोटेंशियल की सफलता
युकावा पोटेंशियल को ड्युटेरॉन (deuteron) समस्या में सफल पाया गया है तथा निम्न ऊर्जा न्यूक्लिऑन बिखराव (scattering) के आंकड़ों को समझने में भी यह सहायक सिद्ध हुआ है। इसे वास्तविक नाभिकीय पोटेंशियल का अच्छा सन्निकटन कहा जा सकता है।
नियतांक युकावा मेसॉन सिद्धांत में वही स्थान रखता है जैसा विद्युत्चुंबकीय सिद्धांत में आवेश का होता है। जैसे विद्युत्चुंबकीय स्थितिज ऊर्जा होती है, वैसे ही युकावा स्थितिज ऊर्जा होती है।
यह भी दिखाया जा सकता है कि मेसॉन क्षेत्र समीकरण, जिसे विद्युत्चुंबकीय क्षेत्र समीकरण के समान रूप में लिखा जा सकता है,
∇²Φ – 1/R²Φ = 0
इस समीकरण का हल होगा
....(9)
एक्सचेंज (विनिमय) बलों के प्रकार
विनिमय बल तीन प्रकार के होते हैं:
-
*स्थान विनिमय बल (स्पेस एक्सचेंज) या मेज़ोराना बल (Majorana Force)
-
*स्पिन विनिमय बल या बार्टलेट बल (Bartlett Force)
-
*स्थान-स्पिन विनिमय बल या हाइज़ेनबर्ग बल (Heisenberg Force)
इन बलों की विस्तृत चर्चा इस पुस्तक के क्षेत्र से बाहर है।
(1) मेज़ोराना बल (Majorana Force)
पहले प्रकार के लिए, निर्देशांक (कोऑर्डिनेट्स) के विनिमय से वेव फंक्शन (ψ) का चिह्न बदल जाता है यदि पारिटी विषम हो तथा अपरिवर्तित रहता है यदि पारिटी सम हो। पारिटी का सम अथवा विषम होना ऑर्बिटल कोणीय संवेग पर निर्भर करता है।
यदि मेज़ोराना पोटेंशियल को द्वारा निरूपित करें, तो वेव फंक्शन पर इसके प्रभाव को निम्न प्रकार व्यक्त किया जा सकता है:
...(10)
यहाँ केवल का फलन है।
अतः मेज़ोराना बल यह दर्शाता है कि नाभिकीय पोटेंशियल इस पर निर्भर करता है कि सम (Even) है या विषम (Odd)।
(2) बार्टलेट बल (Bartlett Force)
दूसरे प्रकार के बल के लिए, इसी प्रकार लिख सकते हैं:
...(11)
यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि जब (स्पिन समानांतर), तब स्पिन के विनिमय से वेव फंक्शन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, जबकि (स्पिन विपरीत दिशा में) के लिए वेव फंक्शन का चिह्न परिवर्तित हो जाता है।
इस प्रकार, बार्टलेट बल यह स्पष्ट करता है कि नाभिकीय पोटेंशियल और के लिए अलग-अलग होता है।
(3) हाइज़ेनबर्ग बल (Heisenberg Force)
तीसरे प्रकार का बल, हाइज़ेनबर्ग पोटेंशियल, इस प्रकार परिभाषित किया जाता है:
...(12)
यहाँ भी केवल का फलन है।
आम तौर पर, इस संदर्भ में आइसोबारिक स्पिन (Isobaric Spin) अथवा i-स्पिन (i-spin) की संकल्पना को प्रस्तुत किया जाता है, जिससे हाइज़ेनबर्ग पोटेंशियल से संबंधित इन दो अवस्थाओं को निरूपित किया जा सके। इस प्रकार हम लिख सकते हैं:
...(13)
यहाँ को आइसोस्पिन क्वांटम संख्या कहते हैं।
इन तीन विनिमय बलों के अतिरिक्त एक सामान्य (यानी बिना किसी विनिमय के) बल भी हो सकता है, जिसे विग्नर बल (Wigner Force) कहते हैं। इसे निम्न प्रकार लिखा जा सकता है:
...(14)
अतः कुल नाभिकीय पोटेंशियल को इस प्रकार लिखा जा सकता है:
...(15)
मेसॉन सिद्धांत इन विनिमय पोटेंशियलों के लिए एक भौतिक आधार प्रदान करता है। यह ध्यान देने योग्य है कि ये सभी चार पोटेंशियल केवल दूरी पर निर्भर करते हैं, अतः ये केन्द्रीय (Central) प्रकृति के होते हैं।
इनके अतिरिक्त, जैसा कि पूर्व में चर्चा की गई थी, टेंसर बल (Tensor Force) के कारण होने वाले गैर-केन्द्रीय प्रभावों को भी ध्यान में रखना आवश्यक है। यदि हम इसे द्वारा निरूपित करें, तो कुल पोटेंशियल को इस प्रकार लिखा जा सकता है:
...(16)
ध्यान दें कि समीकरण (16) सामान्य है। उदाहरण के लिए, ड्यूटेरॉन (Deuteron) के लिए केवल तब प्रभावी होगा जब तथा सम (Even) हो। शेष सभी पद अनुपस्थित होंगे।
हालांकि समीकरण (16) पूर्ण चित्रण नहीं करता। प्रयोगों से यह ज्ञात हुआ है कि नाभिकीय बल स्थैतिक (Static) नहीं है।
इस कारण, वेग-निर्भर बलों (Velocity-Dependent Forces) पर भी विचार करना आवश्यक हो जाता है।
L.S स्पिन-कक्षा अंतःक्रिया (Spin-Orbit Interaction) वेग-निर्भर बलों का एक उदाहरण है। इसकी मात्रा स्पिन और कक्षीय गति के बीच के कोण तथा के मान पर निर्भर करती है। जब , तब यह बल शून्य हो जाता है।
प्रस्तावना
नाभिकीय बल की प्रकृति को समझने के लिए हाइड्रोजन के समस्थानिक, ड्यूटेरॉन (Deuteron) का अध्ययन उपयोगी है। प्रयोगों से पता चलता है कि नाभिकीय बल स्पिन (Spin) और ऑर्बिटल कोणीय संवेग (Orbital Angular Momentum) पर निर्भर करता है। इस विशेषता को युकावा (Yukawa) के मेसॉन आदान-प्रदान सिद्धांत से समझा जा सकता है। यह हमें नाभिकीय बल का सैद्धांतिक चित्र नहीं देती, बल्कि यह बताती है कि नाभिकीय बल के बारे में कोई भी सिद्धांत किन गुणों की भविष्यवाणी अवश्य करे। संकेत इस तथ्य से मिलता है कि नाभिकीय बल इस बात पर निर्भर करता है कि ड्यूटेरॉन प्रणाली का स्पिन 0 है या 1, और कक्षीय संवेग (orbital momentum) सम (even) है या विषम (odd)। आखिर क्यों नाभिकीय बल इन पर निर्भर करता है? इसका उत्तर प्रसिद्ध युकावा (Yukawa) सिद्धांत देता है, जिसमें न्यूक्लियॉनों द्वारा मेसॉनों के विनिमय की परिकल्पना की गई है। यही विनिमय मेसॉन बलों का कारण बनता है।
जैसे विद्युत आवेशों के बीच की बलों की व्याख्या में ‘दूरी पर क्रिया’ (action at a distance) की अवधारणा एक समय कठिन प्रतीत होती थी, वैसे ही विद्युत क्षेत्र सिद्धांत ने इसे ‘वास्तविक कणों के आदान-प्रदान’ द्वारा समझाया। विद्युत क्षेत्र सिद्धांत के अनुसार, प्रत्येक आवेश के चारों ओर आभासी (virtual) फोटॉनों का एक बादल होता है, जिन्हें लगातार उत्सर्जित और अवशोषित किया जाता है। जब दो आवेश पास आते हैं, तो एक फोटॉन उत्सर्जित करता है और दूसरा उसे अवशोषित करता है। यह निरंतर विनिमय विद्युत बल को जन्म देता है।
रसायन विज्ञान में, इलेक्ट्रॉनों के विनिमय से बनने वाली बलों को अक्सर देखा जाता है। जैसे, हाइड्रोजन अणु में दो हाइड्रोजन परमाणुओं के बीच एक मजबूत बंध होता है, परंतु तीसरा परमाणु उसकी ओर आकर्षित नहीं होता – यह बंध संतृप्त कहलाता है। यह सहसंयोजक बंध (covalent bond) इलेक्ट्रॉनों के विनिमय से बनता है।