" Website से संबंधित सहायता के लिए Instagram पर message करें 👍 / कृपया अपने पिछली परीक्षा के प्रश्नपत्र हमें भेजें 🧾 Instagram Message/संदेश भेजें!

अरेखीय प्रकाशिकी | Non-Linear optics (हिंदी)

 परिभाषाएं:—

Laser physics

• प्रकाशिकी (Optics)

प्रकाशिकी भौतिकी की वह शाखा है जिसमें प्रकाश के गुणों, उसके व्यवहार, उसकी उत्पत्ति, प्रसार, परावर्तन, अपवर्तन, विवर्तन, व्यतिकरण और ध्रुवण का अध्ययन किया जाता है।

मुख्य भाग:

  • भौतिक प्रकाशिकी (Physical Optics): जहाँ प्रकाश को तरंग के रूप में माना जाता है और उसके अनुसार ही गुणों की व्याख्या की जाती है।
  • ज्यामितीय प्रकाशिकी (Geometrical Optics): जहाँ प्रकाश को सीधी रेखा में चलने वाली किरणों के रूप में माना जाता है।
  • क्वांटम प्रकाशिकी (Quantum Optics): जहाँ प्रकाश के कणीय स्वभाव (फोटॉन) का अध्ययन होता है और उसके अनुरूप गुणों की व्याख्या की जाती है।

• रेखीय प्रकाशिकी (Linear Optics)

रेखीय प्रकाशिकी वह क्षेत्र है जिसमें यह माना जाता है कि पदार्थ के साथ प्रकाश की पारस्परिक अंतःक्रिया रेखीय होती है, अर्थात् प्रकाश की तीव्रता और पदार्थ की प्रतिक्रिया के बीच एक सीधा अनुपात होता है।

मुख्य विशेषताएँ:

प्रकाश का अपवर्तनांक स्थिर होता है (प्रकाश की तीव्रता से प्रभावित नहीं होता)।

सुपरपोजीशन सिद्धांत लागू होता है (दो तरंगें एक-दूसरे से स्वतंत्र रूप से जुड़ सकती हैं)।

सामान्य दर्पण, लेंस, और प्रिज़्म का व्यवहार इसी के अंतर्गत आता है।

उदाहरण:

  1. अपवर्तन (Refraction)
  2. परावर्तन (Reflection)
  3. विवर्तन (Diffraction)
  4. ध्रुवण (Polarization)
  5. व्यतिकरण (interference) 

1. अरेखीय प्रकाशिकी (Nonlinear Optics)

अरेखीय प्रकाशिकी वह क्षेत्र है जिसमें उच्च तीव्रता वाले प्रकाश (जैसे लेज़र) के कारण पदार्थ की प्रतिक्रिया रेखीय नहीं होती है, अर्थात् प्रकाश की तीव्रता में परिवर्तन से पदार्थ के गुणों (जैसे अपवर्तनांक) में भी परिवर्तन होता है।

"अरेखीय प्रकाशिकी (Nonlinear Optics - NLO) प्रकाशिकी की वह शाखा है, जिसमें प्रकाश और पदार्थ के बीच उस अवस्था में होने वाली पारस्परिक क्रिया का अध्ययन किया जाता है, जहाँ किसी बाह्य रूप से आरोपित विद्युतचुंबकीय क्षेत्र के प्रति पदार्थ की प्रतिक्रिया उस क्षेत्र के आयाम (प्रबलता) के सापेक्ष अरेखीय होती है।"

निम्न प्रकाश तीव्रताओं पर, पदार्थों के गुणधर्म प्रकाश की तीव्रता से स्वतंत्र रहते हैं। ऐसी स्थिति में प्रकाश तरंगें एक-दूसरे के साथ कोई पारस्परिक क्रिया किए बिना पदार्थों से होकर गुजर सकती हैं या उनकी सतहों से परावर्तित हो सकती हैं।

हालाँकि, लेज़र स्रोत इतनी उच्च प्रकाश तीव्रताएँ प्रदान (उत्पन्न) कर सकते हैं कि वे पदार्थों के प्रकाशीय गुणों में परिवर्तन उत्पन्न कर सकें। इस स्थिति में प्रकाश तरंगें एक-दूसरे के साथ पारस्परिक क्रिया कर सकती हैं, जिसके फलस्वरूप ऊर्जा और संवेग का आदान-प्रदान संभव होता है। इस प्रकार की पारस्परिक क्रिया के परिणामस्वरूप नई आवृत्तियों वाले प्रकाशीय क्षेत्रों की उत्पत्ति हो सकती है।

प्रकाशिक क्षेत्र में अरेखीय गुणों का प्रभावशाली प्रदर्शन सर्वप्रथम फ्रैंकन और उनके सहयोगियों द्वारा 1961 में देखा गया, जब उन्होंने प्रकाश के सन्नादी उत्पादन (Harmonic Generation) की घटना का अवलोकन किया । उन्होंने यह पाया कि जब रूबी लेज़र 

(λ = 6493 Å) की किरणों को क्वार्ट्ज क्रिस्टल के माध्यम से प्रवाहित किया गया, तो इससे प्राप्त प्रकाश में मूल आवृत्ति की तुलना में दोगुनी आवृत्ति वाली अल्ट्रावायलेट या पराबैंगनी प्रकाश उत्पन्न हो गया था।

Non linear Optics

"अरेखीय प्रकाशिकी कि पहली घटना"

इस प्रयोग ने व्यापक रूप से वैज्ञानिक रुचि को आकर्षित किया और अरेखीय प्रकाशकीय गुणों के प्रायोगिक एवं सैद्धांतिक अध्ययन की दिशा में अनुसंधान की एक नई शुरुआत दी।

🕸️ अरेखीय प्रकाशिकी प्रभाव घटित होने का कारण —

सामान्य रेखीय प्रकाशिकी में, जब कोई प्रकाश तरंग किसी अणु पर क्रिया करती है, तो अणु कंपन करने लगता है और फिर वह स्वयं एक प्रकाश तरंग का उत्सर्जन करता है, जो मूल प्रकाश तरंग के साथ व्यतिकरण करती है।

अब कल्पना कीजिए कि यदि प्रकाश की तीव्रता (irradiance) इतनी अधिक हो जाए कि अनेक अणु उच्च-ऊर्जा स्तरों पर उत्तेजित हो जाएँ, तो यह उच्च-ऊर्जा अवस्था आगे की उत्तेजना के लिए निम्न स्तर (lower level) के रूप में कार्य कर सकती है।

इस प्रकार, विभिन्न उत्तेजित अवस्थाओं के बीच उपस्थित ऊर्जा अंतरों के अनुरूप अणुओं में विभिन्न आवृत्तियों पर कंपन उत्पन्न होते हैं।

यह प्रक्रिया विभिन्न ऊर्जा स्तरों के मध्य सभी संभावित संक्रमणों के अनुरूप बहु-आवृत्तिक प्रकाशीय प्रतिक्रियाओं को जन्म देती है, जो अरेखीय प्रकाशिकी की विशेषता है।

🕸️ आवृत्ति (frequency) में इस परिवर्तन और सन्नादी उत्पादन (Harmonic Generation)

जब कोई परावैद्युतांक माध्यम (dielectric medium) किसी बाह्य विद्युत क्षेत्र (electric field) में रखा जाता है, तो यदि उस क्षेत्र की आवृत्ति पर माध्यम में कोई संक्रमण (transition) उपस्थित नहीं है, तो वह ध्रुवित (polarized) हो जाता है। उस माध्यम का प्रत्येक घटक अणु एक द्विध्रुव (dipole) की भाँति कार्य करता है, जिसका
 द्विध्रुव आघूर्ण (dipole moment) = Pi
 होता है।

एकांक आयतन (unit volume) में द्विध्रुव आघूर्ण का सदिश योग इस प्रकार व्यक्त किया जाता है:

P = ∑iPi      ...(1)

जहाँ योगफल एकांक आयतन में उपस्थित सभी द्विध्रुव पर लिया गया है।
बाहरी विद्युत क्षेत्र का द्विध्रवों पर प्रभाव न केवल माध्यम के गुणधर्मों पर निर्भर करता है, बल्कि विद्युत क्षेत्र की तीव्रता पर भी। इस प्रकार, हम लिख सकते हैं:

P = ε0χE     ...(2)

यहाँ 
χ को माध्यम की ध्रुवणशीलता (polarizability) या परावैद्युतांक संवेदनशीलता (dielectric susceptibility) कहते हैं। यह समीकरण पारंपरिक प्रकाश स्रोतों की सामान्य क्षेत्र-तीव्रता के लिए मान्य होता है।

यहाँ पर यह ध्यान रखना आवश्यक है कि  χ , यद्यपि E
 से स्वतंत्र माना जाता है, फिर भी यह आवृत्ति पर निर्भर होता है।

🕸️ अत्यधिक तीव्र लेज़र विकिरण की स्थिति में:
जब लेज़र विकिरण पर्याप्त तीव्रता वाला होता है, तब उपरोक्त रेखीय संबंध (2) प्रासंगिक नहीं रहता, और उसे सामान्यीकृत किया जाता है:

ε0​[ χ(1)E¹ χ(2) χ(3)+…]    ...(3)


 यहां 
  • χ (1) वही है जो समीकरण (2) में था,
  •  , आदि को अरेखीय संवेदनशीलता गुणांक (nonlinear susceptibilities) कहते हैं, जो अरेखीयता की डिग्री को दर्शाते हैं।

यदि विद्युत क्षेत्र की तीव्रता निम्न हो (जैसे सामान्य प्रकाश स्रोतों की स्थिति में), तो केवल प्रथम पद 
χ (1)E

 को ही पर्याप्त माना जाता है, और ऐसी अवस्था को ही रेखीय प्रकाशिकी (linear optics) कहा जाता है।

जैसे-जैसे विद्युत क्षेत्र की तीव्रता बढ़ती है, उच्च क्रम के पद (higher-order terms) अधिक महत्वपूर्ण हो जाते हैं।

इस प्रकार, माध्यम के प्रकाशीय गुणधर्म — जैसे कि परावैद्युतांक पारगम्यता (dielectric permittivity) और अपवर्तनांक (refractive index) — जो सामान्यतः χ
 पर निर्भर होते हैं, अब विद्युत क्षेत्र की तीव्रता E पर भी निर्भर बन जाते हैं।

ऐसा कोई माध्यम, जिसकी ध्रुवणता (polarization) समीकरण (3) के अरेखीय संबंध का पालन करती है, उसे "अरेखीय माध्यम" (nonlinear medium) कहा जाता है।

🕸️ यदि किसी माध्यम पर आरोपित क्षेत्र का रूप हो:

E0cos(ωt)   ...(4)

तो इसे समीकरण (3) में स्थापित करने पर प्राप्त होता है:

ε0[χ(1)E¹0cos(ωtχ(2)0cos2(ωtχ(3)0cos3(ωt)+]                  ...(5)


परंतु त्रिकोणमितीय संबंधों से हम जानते हैं कि :

cos²θ = 1/2( 1+Cos2θ)

cos³θ = 3/4 cosθ + 1/4 cos3θ   ..(6)

इन मानों को समीकरण (5) में रखने पर  


समीकरण (7) से स्पष्ट है कि उपर्युक्त पदों का भौतिक अर्थ निम्न होगा:

  • सामान्य (रेखीय) परिस्थितियों में, यह ध्रुवण सीधे-सीधे विद्युत क्षेत्र की तीव्रता के अनुपात में होता है। इसे हम सरल संबंध में लिख सकते हैं: ध्रुवण = एक नियतांक × विद्युत क्षेत्र
  • पहला पद (नियतांक) एक स्थायी (dc) क्षेत्र उत्पन्न करता है — इसका व्यावहारिक महत्व अपेक्षाकृत कम होता है।
  • दूसरा पद मूल क्षेत्र की आवृत्ति ω पर दोलन करता है — इसे प्रथम हार्मोनिक या मूल ध्रुवण कहा जाता है।
  • तीसरा पद 2ω आवृत्ति पर दोलन करता है — इसे द्वितीय हार्मोनिक (second harmonic) कहा जाता है।
  • चौथा पद 3ω आवृत्ति पर दोलन करता है — इसे तृतीय हार्मोनिक कहा जाता है, और इसी प्रकार आगे यही श्रृंखला बढ़ती चली जाती है।



🕸️ अरैखिक प्रकाशिकी (Non linear optics) के उपयोग :

1. हार्मोनिक जनरेशन (Harmonic Generation)

सेकेंड हार्मोनिक जनरेशन (SHG): आवृत्ति दोगुनी करना (frequency doubling), जैसे Nd\:YAG लेज़र (1064 nm) को हरे प्रकाश (532 nm) में बदलना।

थर्ड हार्मोनिक जनरेशन (THG): तृतीय आवृत्ति पर प्रकाश उत्पन्न करना।
 उपयोग: मेडिकल इमेजिंग, माइक्रोस्कोपी, जैविक टिशू विश्लेषण।

2. ऑप्टिकल स्विचिंग और मॉड्यूलेशन—
तीव्रता पर आधारित ऑप्टिकल स्विच बनाना।
टेलीकम्युनिकेशन में उपयोग जहाँ प्रकाश को बिना इलेक्ट्रॉनिक रूपांतरण के नियंत्रित किया जाता है।

3. ऑप्टिकल सॉलिटॉन और डेटा ट्रांसमिशन—
फाइबर ऑप्टिक्स में सॉलिटॉन वेव्स का उपयोग लंबी दूरी तक डेटा भेजने के लिए किया जाता है, बिना सिग्नल बिगाड़े।

4. ऑप्टिकल लिमिटिंग—
 लेज़र बीम की तीव्रता को सीमित करने के लिए (सुरक्षा हेतु)।
नेत्र सुरक्षा उपकरण और सेंसर सुरक्षा में उपयोग।

5. फेज मैचिंग और ट्यून करने योग्य लेज़र—
विभिन्न तरंगदैर्घ्य की प्राप्ति हेतु क्रिस्टल में प्रकाश के फेज को मिलाया जाता है।
ट्यून करने योग्य लेज़र के निर्माण में उपयोगी।

6. लेज़र स्रोतों का विस्तार (Wavelength Conversion)—
 इंफ्रारेड या अल्ट्रावायलेट क्षेत्रों में नई तरंगदैर्घ्य उत्पन्न करना।
UV Lithography, spectroscopy में उपयोगी।

7. स्पेक्ट्रोस्कोपी और सेंसर
 Raman scattering और मल्टी-फोटॉन इंटरेक्शन के लिए।
 अत्यंत संवेदनशील बायो-सेंसर और गैस सेंसर।

8. क्वांटम ऑप्टिक्स—
एन्टैंगल्ड फोटोन पेयर का निर्माण (जैसे SPDC प्रक्रिया द्वारा)।
 क्वांटम संचार और क्रिप्टोग्राफी में उपयोग।

9. होलोग्राफी और डेटा स्टोरेज—
3D ऑप्टिकल डेटा स्टोरेज और होलोग्राफिक इमेजिंग में किसी वस्तु के त्रिविमीय चित्र बनाने में उपयोग किया जाता है।

10. मेडिकल डायग्नोस्टिक्स—
नॉनलाइनियर माइक्रोस्कोपी जैसे Second Harmonic Generation Microscopy (SHGM) और Two-Photon Microscopy (TPM) में।

एक टिप्पणी भेजें

Cookie Consent
We serve cookies on this site to analyze traffic, remember your preferences, and optimize your experience.
Oops!
It seems there is something wrong with your internet connection. Please connect to the internet and start browsing again.
AdBlock Detected!
We have detected that you are using adblocking plugin in your browser.
The revenue we earn by the advertisements is used to manage this website, we request you to whitelist our website in your adblocking plugin.
Site is Blocked
Sorry! This site is not available in your country.
NextGen Digital Welcome to WhatsApp chat
Howdy! How can we help you today?
Type here...